The Definitive Guide to चमकौर का युद्ध

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पंजाब: खासा-नारायणगढ़ इलाकों में बिजली आपूर्ति बहाल, खराब मौसम से मान सरकार को बड़ा नुकसान

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गुरूदेव जी अपने चालीस सिक्खों के साथ आगे बढ़ते हुए दोपहर तक चमकौर नामक क्षेत्र के बाहर एक बगीचे में पहुँचे। यहाँ के स्थानीय लोगों ने गुरूदेव जी का हार्दिक स्वागत किया और प्रत्येक प्रकार की सहायता की। यहीं एक किलानुमा कच्ची हवेली थी जो सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि इसको एक ऊँचे टीले पर बनाया गया था। जिसके चारों ओर खुला समतल मैदान था। हवेली के स्वामी बुधीचन्द ने गुरूदेव जी से आग्रह किया कि आप इस हवेली में विश्राम करें।

उपरांत सरसा नदी पार करके गुरु जी रोपड़ के पास निहंग खान की गढ़ी (कोटला निहंग खान) में रुके और रात को आगे चल पड़े तो दुश्मनों की फौजों ने पीछा करना शुरू कर दिया। गुरुजी ने चमकौर की कच्ची गढ़ी में दाखिल होकर मोर्चाबंदी कर ली। गुरुजी के साथ बड़े साहिबज़ादे एवं पांच प्यारों सहित लगभग चालीस सिंह थे। दुश्मन की लाखों की फौज ने गढ़ी को घेरा डाल लिया। सारा दिन जंग होती रही। शाम तक गुरु जी के पास लगभग सारा गोली-सिक्का खत्म हो गया। अब सिंहों ने गढ़ी से बाहर आकर लड़ना आरंभ कर दिया। गुरुजी ने बारी-बारी बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी को पूरे अस्त्र-शस्त्र सजाकर मैदान-ए-जंग में भेजा। अंत बहादुर योद्धाओं वाले जौहर दिखाते हुए सिंहों सहित गुरुजी के दोनों बड़े साहिबजादे गुरुजी के सामने मैदान-ए-जंग में शहीद हो गए। गुरुजी के लिए सिंहों और सुपुत्रों के मध्य कोई अंतर नहीं था। गुरुजी ने दोनों साहिबजादों की शहादत पर चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी और अकाल पुरख का शुक्राना किया। लाखों की संख्या में शत्रु सेना मुठ्ठी भर सिंहों का हौसला कम करने की हिम्मत न कर सकी। श्री गुरु गोविंद सिंह जी की रणनीति कमाल की थी। दुश्मन फौज को चंद सिक्खों ने धूल चटा दी। यह अमृत की शक्ति थी कि खालसा फौज ने रणभूमि में कौशल दिखलाए।

सवा लाख से एक लडाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहउँ,"

चमकौर का ऐतिहासिक युद्ध - सवा लाख से एक लड़ा था !

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अगली सुबह प्रकाश होने पर शत्रु सेना को भारी निराशा हुई क्योंकि हजारों असँख्य शवों में केवल पैंतीस शव सिक्खों के थे। उसमें भी उनको गुरू गोबिन्द सिंह कहीं दिखाई नहीं दिये। क्रोधातुर होकर शत्रु सेना ने गढ़ी पर पुनः आक्रमण कर दिया। असँख्य शत्रु सैनिकों के साथ जूझते हुए अन्दर के पाँचों सिक्ख वीरगति पा गए।

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Source रूस के राष्ट्रपति वाल्दिमीर पुतिन ने इसे “धोखा” और “पीठ में छुरा घोंपना” बताया.

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