A Review Of दशराज्ञ युद्ध वैदिक 10 राजाओं की युद्ध घटना

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धेनुं न त्वा सूयवसे दुदुक्षन्नुप ब्रह्माणि ससृजे वसिष्ठः ।

पुरु: इस वंश के बारे में ज्यादा लिखने की जरूर ही नहीं है क्योंकि कई पुराणो में इनके बारे में लिखा गया है।

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द्रुह्यु: इनका वर्णन ऋग्वेद में अनु समुदाय के साथ आता है। ये मूलतः गांधार के निवासी थे और राजा का नाम अंगार जानने को मिलता है। लेकिन कहा जाता है की इस युद्ध के बाद इन्हें मध्य एशिया की तरफ खदेड़ दिया गया। इस वंश के इतिहास से साबित होता है की भारत से आर्य बाहर चले गए थे।

इस अवधारणा को चित्र के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है कि एक विशाल ऑनलाइन मानसिक नक्शा है।

त्रयः कृण्वन्ति भुवनेषु रेतस्तिस्रः प्रजा आर्या ज्योतिरग्राः ।

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ऋग्वेदिक काल की शुरुआत में बड़े-बड़े राजतन्त्र नहीं थे बल्कि कबीलों के द्वारा शासन चलता था।

इस बड़े संघ का नेता पुरु जनजाति था। पहले पुरु को एक बड़ी जनजाति माना जाता था और भरत जनजाति उनका एक हिस्सा थी।इस महान प्राचीन युद्ध के पीछे का कारण थोड़ा अस्पष्ट है क्योंकि इतिहासकारों ने इस युद्ध के कारण के लिए अलग-अलग कारण सुझाए थे।

जब समाज ने धर्मशास्त्र का समुचित पालन करना छोड़ दिया तो चारों ओर अशांति एवं अव्यवस्था का राज्य स्थापित हुआ। इससे निजात पाने के लिए कुछ निश्चित शर्तों पर राजा का निर्वाचन हुआ। इस सिद्धांत की पुष्टि महाभारत, अर्थशास्त्र एवं राज्याभिषेक के समय पाठ किए जाने वाले वैदिक मंत्रों से होती है। पैतृक संयुक्त कुटुम्ब पद्धति से राजतन्त्र का उदय

न ते भोजस्य सख्यं मृषन्ताधा सूरिभ्यः सुदिना व्युच्छान् ॥२१॥

इस युद्ध का विजयी राजा सुदास तृत्सु नामक समुदाय का था। विरोधी दल check here इस प्रकार थे:

भारतीय रूपये के बाारे में रोचक जानकारी

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